Wednesday, August 5, 2009

मानव लौ जलाने को हूँ !


तेरी कृपा के शब्दों से माँ श्रद्धा सुमन लाने को हूँ l
मन से, तन से, इस जीवन से, मानव लौ जलाने को हूँ ll

सुप्त हो गया है वो, जो चेतन भी है चिंतन भी है l
जलते हुए अंगारों से माँ, जीवन लौ जलाने को हूँ ll

शोरगुल यह बढ रहा माँ खामोश राहें हो रही ,
पा रहा 'ह्रदय' मंजिलें पर मंजिलें ही खो रही l
खो गया हूँ ख़ुद में यूँ मैं, ख़ुद ही मैं में खो गया
तेरी कृपा की रोशनी से, विचारों की, लौ जलाने को हूँ ll



No comments:

Post a Comment