रुक्सती में आखिरी ह्रदय किसको ढूंढ़ता हूँ,
आत्मा तो जल रही थी, अब तन से भी जल रहा हूँ
सोने को हूँ लम्बी रात में, आऊंगा उजली प्रभात में
जलती हुई चिता से, एक दिए को ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी....
बन चुका हूँ गंगधार, अब तो राख भी न बाकि
डर है न भूल जाओ, रहूँ चिंतन में सदा बाकि
रहूँ विचार बन के, वो मानस ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी ...
नम थी जलती आँखें, खामोश थे क्रोधी मुख सब
फिर बहक ना जायें, कदमों में विश्वास ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी ...
"ह्रदय" खुश हूँ की मिट गया हूँ, मिटा हूँ देश की खातिर
खुली हैं बंद होती निगाहें, निगाह है देश पर कोई शातिर
खड़े रहें जो अपने पैरों पर, वो तन मैं ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी, अब तन से भी जल रहा हूँ
Wednesday, August 5, 2009
हर श्वास में विश्वास भर ले
टूटा अँधेरा भोर में, पंछियोँ के शोर में
चल करें स्वागत सूर्य का, बढ़े सपनों की ओर में
हो गया दूर तम अब, सब दृश्य उज्जवल हो गया
महकती हवा संदेश लाई, मिल गया इक दिवस नया
माँ सरस्वती की वंदना को, नन्हें कदम बढ़नें लगे
आने को है इक युग नया, यह अमृत कानों में भरनें लगे
"ह्रदय" अब अन्तर तक जग ले, रोम रोम में रोमांच भर ले
अबका सवेरा कुछ ख़ास होगा, हर श्वास में विश्वास भर ले.
चल करें स्वागत सूर्य का, बढ़े सपनों की ओर में
हो गया दूर तम अब, सब दृश्य उज्जवल हो गया
महकती हवा संदेश लाई, मिल गया इक दिवस नया
माँ सरस्वती की वंदना को, नन्हें कदम बढ़नें लगे
आने को है इक युग नया, यह अमृत कानों में भरनें लगे
"ह्रदय" अब अन्तर तक जग ले, रोम रोम में रोमांच भर ले
अबका सवेरा कुछ ख़ास होगा, हर श्वास में विश्वास भर ले.
माँ की गोदी
नन्ही अंगुली थामे बचपन की
बड़े कदमों को जीवन में भरता हूँ l
नन्ही बूंदों में ज्ञान सागर सा
जीवन में नए रंग मैं भरता हूँ ll
गिरता भी हूँ, संभालता भी हूँ
कभी ख़ुद से बातें करता हूँ l
नयनों में नीर, अधरों पे मुस्कान
यूँ इन्द्रधनुष सा दीखता हूँ ll
"ह्रदय " खुशियाँ देते पल बचपन के सब
सब तेरे ही आँचल से माँ लेता हूँ l
माँ सब सुखों से तेरी गोदी प्यारी
तेरे चारों से ज्ञान सब लेता हूँ ll
बड़े कदमों को जीवन में भरता हूँ l
नन्ही बूंदों में ज्ञान सागर सा
जीवन में नए रंग मैं भरता हूँ ll
गिरता भी हूँ, संभालता भी हूँ
कभी ख़ुद से बातें करता हूँ l
नयनों में नीर, अधरों पे मुस्कान
यूँ इन्द्रधनुष सा दीखता हूँ ll
"ह्रदय " खुशियाँ देते पल बचपन के सब
सब तेरे ही आँचल से माँ लेता हूँ l
माँ सब सुखों से तेरी गोदी प्यारी
तेरे चारों से ज्ञान सब लेता हूँ ll
मानव लौ जलाने को हूँ !
तेरी कृपा के शब्दों से माँ श्रद्धा सुमन लाने को हूँ l
मन से, तन से, इस जीवन से, मानव लौ जलाने को हूँ ll
सुप्त हो गया है वो, जो चेतन भी है चिंतन भी है l
जलते हुए अंगारों से माँ, जीवन लौ जलाने को हूँ ll
शोरगुल यह बढ रहा माँ खामोश राहें हो रही ,
पा रहा 'ह्रदय' मंजिलें पर मंजिलें ही खो रही l
खो गया हूँ ख़ुद में यूँ मैं, ख़ुद ही मैं में खो गया
तेरी कृपा की रोशनी से, विचारों की, लौ जलाने को हूँ ll
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