रुक्सती में आखिरी ह्रदय किसको ढूंढ़ता हूँ,
आत्मा तो जल रही थी, अब तन से भी जल रहा हूँ
सोने को हूँ लम्बी रात में, आऊंगा उजली प्रभात में
जलती हुई चिता से, एक दिए को ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी....
बन चुका हूँ गंगधार, अब तो राख भी न बाकि
डर है न भूल जाओ, रहूँ चिंतन में सदा बाकि
रहूँ विचार बन के, वो मानस ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी ...
नम थी जलती आँखें, खामोश थे क्रोधी मुख सब
फिर बहक ना जायें, कदमों में विश्वास ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी ...
"ह्रदय" खुश हूँ की मिट गया हूँ, मिटा हूँ देश की खातिर
खुली हैं बंद होती निगाहें, निगाह है देश पर कोई शातिर
खड़े रहें जो अपने पैरों पर, वो तन मैं ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी, अब तन से भी जल रहा हूँ
Wednesday, August 5, 2009
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