Wednesday, August 12, 2009

जीवन को सरिता करना है

इक मकसद जीवन में रखकर, जीवन को इक मकसद कर कर
नवनीत जीवन इक जीना है

हर आंसू को मोती कर कर, आंखों में सपना भर कर
जीवन को आशा करना है

मन में भावों को भर कर, भावों को सुमन कर कर
उपवन जीवन को करना है

बूंदों से तृप्ति कर कर, मेघों में खुशियाँ भर कर
"ह्रदय" जीवन को सरिता करना है

एक ठिठुरती रात बस में

धुंध भरी रातों में, पड़ते हुए पलों में,
जब सो जाते हैं दुबक के घर में
गोद किसी की जगती है, ज़िन्दगी तो चलती है

निगाहें देख पाती नहीं, राहें नज़र आती नहीं
इक हिम्मत मंजिल की ओर बढती है, ज़िन्दगी तो चलती है

ठिठुरती हुई ज़िन्दगी, बैठती थी किसी कोने में,
तापने को तन कोई भीगते बिछौने में
चाय की भट्टी जलती है, जिन्दगी तो चलती है

केवल दौलत चलाती नहीं, सिर्फ़ ज़रूरत यह काम कराती नहीं
यह काम है किसी देव का , रातें तो यूँ जगती नहीं
"ह्रदय छोड़ सबको मंजिलों पर,
मंजिल की ओर बढती है ज़िन्दगी तो चलती है

Tuesday, August 11, 2009

बचपन - बुढापा

बचपन बुढापा संग संग देखा, अंगुली से अंगुली पकड़ते देखा

न जाने किसको किसने थामा, पर संग संग हँसते खेलते देखा

दोनों के जीवन में बरसों, इक जाने को, इक आने को

दोनों को इच्छा, अपनों की, दोनों को प्यार में बंटते देखा

दोनों सागर, दोनों बूंदें, 'ह्रदय' दोनों में जीवन देखा

इक अंकुर, इक माली, हर उपवन को, महकते देखा

Monday, August 10, 2009

आ खोजें अब जमीं नईं

जब लड़ रही थी किश्ती मेरी,लहरों से, तुफानों से,

भंवर भी साथ हो लिए,आसमान भी रो दिए

कड़क रही थी बिजली यों, दीखाने को रास्ता ज्यों

हवा चली मदद को जों, खो गया मैं रास्ता त्यों

अंधेरों का मैंने साथ लिया, होंसलों को ना खोने दिया

नाव थी नाज़ुक बहुत, साथ उसने दिया बहुत

उमीदों की नाव थी, कोशिशों के साथ थी

कर रहे थे अपने दुआ, अरमानों की वोह नाव थी

"ह्रदय' पा गया जीवन नया, हो गया सवेरा नया

अब अगले सफर को तैयार हूँ, तुफानों में आवाज़ हूँ

कदमों में ताक़त नईं, आ खोजें अब जमीं नईं

Saturday, August 8, 2009

फोटो भगवान् की


पेड़ के नीचे पड़ी फोटो भगवान् की, कह रही थी कहानी अपमान की

विचारों का अन्तर में अभाव रहा होगा , शर्मिंदा करती कृत्य पर इसान की

जिन हाथों ने पूजा उन्ही ने तिरस्कारा बेवक्त बेसहारा किया हमसे किनारा

मन्नतें मांगीं, घी दीपक जलाया, हर गुर्ब्बत में अपनी था हमको मनाया

तस्वीर थी नाशुक्री की, लालच की पहचान की, शर्मिंदा करती कृत्य पर इंसान की

प्रौड़ में आया ,यह बचपन से यौवन, तन हुआ वृद्ध अब करता है रोवन

कई पेड़ खाली, भटके है माली, तरसे है बूंदों को सावन का धोवन

"ह्रदय" छत है यह किसी ऊँचे मकान की, कह रही थी कहानी अपमान की

विश्वास

विश्वास तू आधार जीवन का, जीवन को तू कुछ मान ना मान
तुझसे ही रमता हर रिश्ता, सब रिश्तों का तू ही प्राण

तेरे बल मैं सपने बुनता , कल आयेगा करके ध्यान
तुझ बिन तमस और भय बढ़ता, हो जाता सब चिंतन निष्प्राण

विश्वास से ही माँ जीवन देती,देती हर तन को पहचान
तेरे बल बचपन, बंध अंगुली चलता, प्रेम जीवन में बनता वरदान

"ह्रदय"बढे कितना ही अँधेरा, रोशन होता फिर जहान
मानव में तू, पानी में तरलता, करता मानव तू ईश्वर समान

Thursday, August 6, 2009

पिपासा अन्तर की

तप रहा सूरज गगन में, धरती सारी जल रहीl

दूर तडफे मेघ दर्शक, निकट आ सकता नहीं ll

सूर्य जलता जल रहा,सागर से बूंदें आ रही l

जल रहे सारे यहाँ पर,क्यों जल रहे पता नहीं ll

सोच धरती जीव कर्मा, विचारों की हवा रही l

धरती जलती जीव जलता, हवा में शीतलता नहीं ll

सागर है मन, मेघ इंसान, दोनों की दुरी बढ़ रही l

बढ़ रहा अभिमान सूरज, प्रेम की बूंदें नहीं ll

सत्संग का वृक्ष ढूंढे "ह्रदय", पिपासा अन्तर की बढ़ l

ख़ुद को खो कर, ख़ुद को है पाना, बढ़ रहा अब तम नहीं ll

Wednesday, August 5, 2009

आत्मा तो जल रही थी - शहीदों के नाम

रुक्सती में आखिरी ह्रदय किसको ढूंढ़ता हूँ,
आत्मा तो जल रही थी, अब तन से भी जल रहा हूँ

सोने को हूँ लम्बी रात में, आऊंगा उजली प्रभात में
जलती हुई चिता से, एक दिए को ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी....

बन चुका हूँ गंगधार, अब तो राख भी न बाकि
डर है न भूल जाओ, रहूँ चिंतन में सदा बाकि
रहूँ विचार बन के, वो मानस ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी ...

नम थी जलती आँखें, खामोश थे क्रोधी मुख सब
फिर बहक ना जायें, कदमों में विश्वास ढूंढ़ता हूँ

आत्मा तो जल रही थी ...

"ह्रदय" खुश हूँ की मिट गया हूँ, मिटा हूँ देश की खातिर

खुली हैं बंद होती निगाहें, निगाह है देश पर कोई शातिर
खड़े रहें जो अपने पैरों पर, वो तन मैं ढूंढ़ता हूँ
आत्मा तो जल रही थी, अब तन से भी जल रहा हूँ




हर श्वास में विश्वास भर ले

टूटा अँधेरा भोर में, पंछियोँ के शोर में
चल करें स्वागत सूर्य का, बढ़े सपनों की ओर में

हो गया दूर तम अब, सब दृश्य उज्जवल हो गया
महकती हवा संदेश लाई, मिल गया इक दिवस नया

माँ सरस्वती की वंदना को, नन्हें कदम बढ़नें लगे
आने को है इक युग नया, यह अमृत कानों में भरनें लगे

"ह्रदय" अब अन्तर तक जग ले, रोम रोम में रोमांच भर ले
अबका सवेरा कुछ ख़ास होगा, हर श्वास में विश्वास भर ले.

माँ की गोदी

नन्ही अंगुली थामे बचपन की
बड़े कदमों को जीवन में भरता हूँ l
नन्ही बूंदों में ज्ञान सागर सा
जीवन में नए रंग मैं भरता हूँ ll

गिरता भी हूँ, संभालता भी हूँ
कभी ख़ुद से बातें करता हूँ l
नयनों में नीर, अधरों पे मुस्कान
यूँ इन्द्रधनुष सा दीखता हूँ ll

"ह्रदय " खुशियाँ देते पल बचपन के सब
सब तेरे ही आँचल से माँ लेता हूँ l
माँ सब सुखों से तेरी गोदी प्यारी
तेरे चारों से ज्ञान सब लेता हूँ ll

मानव लौ जलाने को हूँ !


तेरी कृपा के शब्दों से माँ श्रद्धा सुमन लाने को हूँ l
मन से, तन से, इस जीवन से, मानव लौ जलाने को हूँ ll

सुप्त हो गया है वो, जो चेतन भी है चिंतन भी है l
जलते हुए अंगारों से माँ, जीवन लौ जलाने को हूँ ll

शोरगुल यह बढ रहा माँ खामोश राहें हो रही ,
पा रहा 'ह्रदय' मंजिलें पर मंजिलें ही खो रही l
खो गया हूँ ख़ुद में यूँ मैं, ख़ुद ही मैं में खो गया
तेरी कृपा की रोशनी से, विचारों की, लौ जलाने को हूँ ll